दक्षिण बिहार के मुंगेर अंचल में शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ रहा है। यहां के 9 प्रखंडों में संचालित 270 एकल विद्यालयों में हाल ही में वार्षिक परीक्षा का आयोजन किया गया, जिसमें छात्रों ने पूरी लगन और आत्मविश्वास के साथ भाग लिया। यह आयोजन केवल परीक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रसार और समाज के सहयोग से हो रहे विकास का प्रतीक भी बन गया।
जिन प्रखंडों में हुआ आयोजन
परीक्षा का आयोजन जमालपुर, मुंगेर, धरहरा, बरियारपुर, सुल्तानगंज, हवेली खड़गपुर, तारापुर, सूर्यगढ़ा और चानन जैसे प्रखंडों में किया गया। इन सभी क्षेत्रों में एकल विद्यालय लगातार बच्चों को नि:शुल्क और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान कर रहे हैं, और यह परीक्षा उसी प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पड़ाव थी।
परीक्षा विषय एवं उद्देश्य
इस परीक्षा में छात्रों को तीन प्रमुख विषयों में परखा गया:
- अंक ज्ञान: जिससे बच्चों की गणना, जोड़-घटाव और तार्किक क्षमता का आकलन किया गया।
- भाषा ज्ञान: जिसमें बच्चों के पढ़ने, लिखने और बोलने की दक्षता को परखा गया।
- सामान्य ज्ञान: ताकि बच्चों को अपने परिवेश, देश, और समाज के प्रति सजग बनाया जा सके।
इन परीक्षाओं का मुख्य उद्देश्य केवल अंक प्राप्त करना नहीं था, बल्कि बच्चों में आत्मविश्वास, अनुशासन और परीक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना भी था।
कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी
परीक्षा के संचालन एवं निरीक्षण में कई समर्पित कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। प्रखंड स्तर पर निम्नलिखित कार्यकर्ता उपस्थित रहे:
पम पम जी, खुशबू जी, कदम कुमार, दिलीप जी, शुभम कुमार, दीपक कुमार, मालती जी, प्रमोद कुमार ये सभी कार्यकर्ताओं को प्रत्येक विद्यालय में परीक्षा की तैयारी, प्रश्नपत्र वितरण, बच्चों की उपस्थिति तथा अनुशासन की देखरेख की जिम्मेदारी दी गई थी।
जिला स्तर के कार्यकर्ताओं का निरीक्षण
जिला स्तर से भी कई कार्यकर्ता निरीक्षण के लिए विशेष रूप से पहुंचे। रितेश चंद्रपाल, अमृता मिश्रा, भरत कुमार, सिंकु कुमार, और आदित्य जैसे प्रतिबद्ध कार्यकर्ताओं ने विद्यालयों में जाकर बच्चों की गतिविधियों का निरीक्षण किया और शिक्षकों से संवाद भी किया।
रितेश चंद्रपाल जी ने विशेष रूप से सभी विद्यालयों में जाकर बच्चों की सहभागिता को देखा और उनकी उत्सुकता की प्रशंसा की। उन्होंने बताया कि बच्चों में परीक्षा को लेकर किसी प्रकार का भय नहीं था, बल्कि वे पूरे आत्मविश्वास और आनंद के साथ इसमें शामिल हो रहे थे।
बच्चों में दिखा उत्साह और आत्मबल
विद्यालयों में जाकर यह देखा गया कि छात्र-छात्राएं न सिर्फ पढ़ाई में रुचि ले रहे हैं, बल्कि परीक्षा को भी एक उत्सव की तरह देख रहे हैं। उनके चेहरों पर आत्मविश्वास, आँखों में उत्सुकता और मन में सीखने की ललक स्पष्ट दिखाई दी।
एकल विद्यालयों का सामाजिक प्रभाव
एकल विद्यालय न केवल शिक्षा का प्रसार कर रहे हैं, बल्कि समाज में संस्कार, अनुशासन और नेतृत्व निर्माण की भावना भी विकसित कर रहे हैं। इन विद्यालयों के माध्यम से आज गांव-गांव में शिक्षा की लौ जल रही है, जो आने वाले समय में एक बेहतर और शिक्षित राष्ट्र के निर्माण में सहायक होगी।