मुंगेर में भावुक दृश्य: एक माह बाद लौटा कैप्टन का शव, बेटी ने दी मुखाग्नि

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मुंगेर जिले के संग्रामपुर प्रखंड के मौजमपुर गांव में रविवार का दिन बेहद भावुक और गमगीन रहा। गांव का बेटा, मर्चेंट नेवी में कार्यरत कैप्टन संजीव कुमार सिंह, जो अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए समुद्री यात्रा पर थे, अब अपने गांव वापस लौटे — लेकिन एक पार्थिव शरीर के रूप में। उनकी अचानक मौत ने न सिर्फ उनके परिवार को बल्कि पूरे गांव को शोक में डुबो दिया। दरअसल, 17 अप्रैल को अमेरिका से बहामास की ओर जा रहे मालवाहक जहाज पर ड्यूटी के दौरान उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा, जिससे उनकी मृत्यु हो गई।

अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाओं के चलते एक माह की देरी

कैप्टन संजीव की मौत की सूचना मिलते ही परिजन बदहवास हो उठे। लेकिन उनका शव तत्काल भारत नहीं लाया जा सका, क्योंकि यह मामला विदेश में हुआ था। इसलिए कई तरह की अंतरराष्ट्रीय प्रक्रियाएं, दूतावासों से अनुमति, कागजी कार्यवाही और अन्य औपचारिकताओं को पूरा करने में लंबा समय लग गया। परिवार की व्यथा और प्रतीक्षा के बीच अंततः 20 मई को उनका पार्थिव शरीर भारत पहुंचा और वहां से गांव लाया गया।

गांव में मचा कोहराम, आंखें हुईं नम

जब एक महीने बाद कैप्टन संजीव का पार्थिव शरीर गांव लाया गया, तो हर कोई स्तब्ध रह गया। उनके घर और गांव में कोहराम मच गया। मातम पसरा हुआ था, और गांव के हर चेहरे पर दुख साफ झलक रहा था। सभी की आंखें नम थीं। घर की स्त्रियों की चीखें और परिजनों की हालत देख हर किसी का दिल पसीज गया।

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अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी भीड़

कैप्टन संजीव कुमार सिंह द्वारा स्थापित मौजमपुर स्थित ‘प्रेसिडेंट कलाम मेमोरियल स्कूल’ में उनके पार्थिव शरीर को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। जैसे ही यह खबर क्षेत्र में फैली, श्रद्धांजलि देने वालों की भीड़ स्कूल परिसर में उमड़ पड़ी। हर कोई इस कर्मठ, विनम्र और सामाजिक रूप से सक्रिय नौजवान को याद कर रहा था। गांव के लोगों ने उनके व्यक्तित्व की प्रशंसा की और बताया कि वे हमेशा समाज के लिए कुछ नया करने की सोच रखते थे।

बेटी सोनाक्षी ने निभाया बेटे का फर्ज

इस दुख की घड़ी में कैप्टन संजीव की बड़ी बेटी सोनाक्षी ने एक ऐसा कदम उठाया, जिसने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने अपने पिता को सुल्तानगंज के गंगा घाट पर मुखाग्नि देकर बेटे का फर्ज निभाया। इस कार्य से सोनाक्षी ने यह सिद्ध कर दिया कि बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं। उन्होंने अपने पिता को हमेशा प्रेरणा का स्रोत बताया और भावुक होकर कहा कि “पापा ने हमें कभी बेटा-बेटी में फर्क नहीं समझाया, आज मैं उन्हीं की परवरिश का सम्मान कर रही हूं।”

बेटियों की भूमिका को नया संदेश

कैप्टन संजीव की दो बेटियां हैं और उन्होंने हमेशा अपने बच्चों को समान दृष्टि से देखा। आज जब उनकी बेटी ने मुखाग्नि दी, तो यह समाज के लिए एक बड़ा संदेश बन गया। यह घटना दर्शाती है कि समाज में बेटियों की भूमिका अब केवल घर की चारदीवारी तक सीमित नहीं है। वे हर जिम्मेदारी निभा सकती हैं, चाहे वह अंतिम संस्कार की परंपरा ही क्यों न हो।

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