मुंगेर में धूमधाम से मनाया गया वट सावित्री व्रत, सुहागिनों ने की पति की लंबी उम्र की कामना

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बिहार के मुंगेर जिले में वट सावित्री पूजा का पर्व इस बार भी पूरी श्रद्धा, आस्था और परंपरा के साथ मनाया गया। शहर और गांवों की गलियों में सजी-धजी महिलाएं पारंपरिक परिधान में वट वृक्ष (बट वृक्ष) की पूजा-अर्चना करती नज़र आईं। इस अवसर पर विवाहित महिलाओं ने सोलह श्रृंगार कर के परंपरागत विधि-विधान से व्रत रखा और वट वृक्ष की पूजा कर अपने पति की लंबी उम्र की मंगल कामना की।

सुहाग की रक्षा का पर्व: सज-धज कर निकलीं महिलाएं

वट सावित्री पूजा को लेकर मुंगेर की गलियां धार्मिक वातावरण से सराबोर रहीं। सुहागिनें नई साड़ियों में, माथे पर बिंदी, मांग में सिंदूर और हाथों में चूड़ियों के साथ दुल्हन की तरह सज-धज कर पूजा स्थल की ओर जाती दिखीं। उनके हाथों में पूजा की थाली थी जिसमें सिंदूर, रोली, फूल, धूप, दीप, मिठाई, फल, दूध, चना, कुमकुम, अक्षत, रक्षा सूत्र, बांस का पंखा और अन्य पूजन सामग्रियां थीं।

व्रत का विशेष महत्व: निर्जला रहकर किया गया पूजन

महिलाओं ने इस दिन निर्जला व्रत रखा यानी पूरे दिन जल ग्रहण नहीं किया और पूरी निष्ठा के साथ वट वृक्ष की परिक्रमा की। परिक्रमा करते समय महिलाएं पेड़ में रक्षा सूत्र बांधती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। यह व्रत केवल शारीरिक तपस्या नहीं है, बल्कि यह मानसिक और आत्मिक शक्ति का भी प्रतीक है, जिसमें महिलाएं अपने पति की कुशलता के लिए संकल्पित होती हैं।

वट वृक्ष की पूजा: जीवन और अखंड सौभाग्य का प्रतीक

वट वृक्ष को हिंदू धर्म में विशेष पवित्रता प्राप्त है। मान्यता है कि इस वृक्ष में त्रिदेव – ब्रह्मा, विष्णु और महेश – का वास होता है। वट वृक्ष का दीर्घायु जीवन ही महिलाओं के लिए पति के दीर्घायु जीवन का प्रतीक माना जाता है। इसलिए सुहागनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं और उसकी परिक्रमा कर रक्षा सूत्र बांधती हैं।

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पौराणिक कथा से जुड़ा महत्व: सावित्री और सत्यवान की अमर प्रेम गाथा

वट सावित्री व्रत के पीछे एक पौराणिक कथा है जो महिला शक्ति और पतिव्रता धर्म की अद्भुत मिसाल है। कहा जाता है कि सावित्री नामक महिला के पति सत्यवान की अकाल मृत्यु हो गई थी। जब यमराज उनकी आत्मा को ले जा रहे थे, तो सावित्री ने उनका पीछा किया और अपनी चतुरता, निष्ठा और भक्ति से यमराज को प्रसन्न कर लिया। अंततः यमराज ने सत्यवान को जीवनदान दे दिया। तभी से यह पर्व महिलाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

ज्येष्ठ अमावस्या का विशेष संयोग

यह पर्व ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है, जिसका धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व होता है। इस दिन सूर्य और चंद्रमा दोनों का प्रभाव कमजोर होता है और यह समय साधना एवं पूजा के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इस दिन महिलाएं विशेष रूप से व्रत करती हैं और पूजा में लीन रहती हैं।

सामूहिकता का भाव: महिलाओं ने एक साथ की पूजा

मुंगेर के विभिन्न मोहल्लों, मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर महिलाओं ने सामूहिक रूप से पूजा की। उन्होंने एक-दूसरे को व्रत की शुभकामनाएं दीं, कथा श्रवण किया और साथ मिलकर व्रत की विधियां पूर्ण कीं। इससे न सिर्फ धार्मिक एकता को बल मिला, बल्कि समाज में सांस्कृतिक सौहार्द की झलक भी देखने को मिली।

भविष्य की कामना और पारिवारिक सुख-शांति का संकल्प

इस पर्व के माध्यम से महिलाएं न केवल पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं, बल्कि अपने पूरे परिवार की सुख-शांति और समृद्धि की कामना भी करती हैं। वट सावित्री पूजा एक ऐसा पर्व है जिसमें नारी शक्ति, आस्था और परिवार के लिए समर्पण की भावना झलकती है।

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