होली के नजदीक आते ही जहां हर ओर होली का रंग चढ़ने लगा है पर मुंगेर जिला अंतर्गत असरगंज प्रखंड का सती स्थान गांव के लोग 250 वर्षों से नही मनाते है होली। ऐसा माना जाता है जिस ने भी इस गांव में मनाया होली उसके यहां होता है कुछ अनिष्ठ। क्या है इस गांव कि कहानी आइए हम जानते है।
रिपोर्ट – रोहित कुमार
दरअसल मुंगेर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर असरगंज प्रखंड अंतर्गत सजूआ पंचायत का सती स्थान गांव। इस गांव की कहानी कुछ अलग हट कर है। इस गांव की आबादी लगभग दो हजार कि है। जहां हर और होली का रंग चढ़ा है पर इस गांव के लोग लगभग 250 सालों से गांव में नही मानते है होली। होली के आते ही इस गांव के लोग सचेत हो जाते है। होली के दिन यहां के ग्रामीण न तो दूसरे को रंग गुलाल लगा होली मनाते है और ना ही होली में बनने वाले पकवान ही बनाते है। यहां तक कि आस पड़ोस के गांव के लोग भी इस गांव के लोगों पर रंग अबीर नही डालते है।
ग्रामीणों के मुताबिक इस गांव में एक पति-पत्नी रहते थे। होली के दिन पति की मृत्यु हो जाती है तो गांव के लोग पति के दाह संस्कार के लिए शव को लेकर जाने लगते हैं। लेकिन शव अर्थी के ऊपर से बार-बार गिर जाता था। इधर पत्नी को लोग घर में बन्द किए हुए होते हैं। गांव वालों ने जब पत्नी को घर का दरवाजा खोल कर निकाला तो पत्नी दौड़कर पति के अर्थी के पास पहुंचकर कहती है कि हम भी अपने पति के साथ जल कर सती होना चाहती हू। यह बात सुनकर गांव वालों ने गांव में ही चिता को तैयार कर दिया। तभी अचानक पत्नी के हाथों के छोटी उंगली से आग निकलती है और उस आग से पति-पत्नी की चिता जल उठती है। बाद में ग्रामीणों के सहयोग से सती स्थल पर मंदिर का निर्माण कराया गया । और लोग वहां पूजा करने लगे।
और तब से यह परंपरा चली आ रही है कि इस गांव के लोग होली नहीं मानते है । ग्रामीणों के अनुसार जिस ने भी चोरी छिपे यहां होली मानने को कोशिश की उसके यहां कुछ न कुछ अनिष्ठ हो जाता है। इस कारण यहां के लोग तो होली नहीं ही मनाते है और तो और इस गांव से निकल कर जो लोग बाहर बस गए है वो भी होली नहीं मानते है। और इस परंपरा को सख्ती से पालन करते है । कुछ ग्रामीणों ने बताया की इस कारण इस गांव का नाम ही सती गांव रख दिया गया और इस गांव में पकवान होली के बदले चैती रामनवमी के अवसर पर पकवान बनाते हैं।