इस शक्तिपीठ में मां की बाईं आंख की होती है पूजा, यहां अंगराज कर्ण दान करते थे सोना, जानिए चंडिका स्थान की क्या है मान्यता

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मुंगेर का चंडिका स्थान: बावन शक्तिपीठों में एक, जहां गिरा था माता सती का बायां नेत्र, इसीलिए यहां मां के नेत्र की होती है पूजा। नवरात्र में भक्तों की उमड़ रही है भारी भीड़।

भारत भूमि अपनी धार्मिक आस्थाओं और पौराणिक कथाओं के लिए जगत विख्यात है। यहां विभिन्न देवी-देवताओं के असंख्य मंदिर हैं। जिनमें शक्तिपीठों का विशेष स्थान है। इन्हीं में से एक है बिहार के मुंगेर जिले में स्थित चंडिका स्थान। यह मंदिर न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत के लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है। चंडिका स्थान की महिमा और प्रसिद्धि इतनी प्राचीन है कि इसके ऐतिहासिक प्रमाण आज भी स्पष्ट रूप से उपलब्ध नहीं हैं। किंवदंतियों और पुराणों के अनुसार यह स्थान उन 52 शक्तिपीठों में से एक है। जहां माता सती के अंग गिरे थे।

माता सती का बायां नेत्र गिरने की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार जब राजा दक्ष की पुत्री सती ने अपने पिता के यज्ञ में अपमानित होकर देह त्याग दी थी, तब भगवान शिव शोक में व्याकुल होकर उनके जले हुए शरीर को कंधे पर लेकर विचरण करने लगे। भगवान शिव के इस विलाप और विचरण से तीनों लोकों में त्राहि-त्राहि मच गई। तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए, जिससे भगवान शिव का शोक समाप्त हो सके और सृष्टि का संतुलन बना रहे।
माना जाता है कि उसी समय माता सती का बायां नेत्र मुंगेर के इस स्थान पर गिरा था। इस कारण इसे चंडिका स्थान के रूप में पूजा जाता है। यहां माता सती के नेत्र की विशेष पूजा होती है।

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चंडिका स्थान के गर्भगृह में माता की गुफा के भीतर एक विशेष स्थान है, जहां भक्त माता के बाएं नेत्र की प्रतिमा के दर्शन करते हैं। यहां मान्यता है कि माता के पास सदैव जलती रहने वाली ज्योत से निकलने वाला काजल आंखों में लगाने से आंखों की बीमारियां दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि नवरात्र के पावन अवसर पर लाखों की संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं और माता से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।

नवरात्र में उमड़ता जनसैलाब

नवरात्र के समय चंडिका स्थान का माहौल भक्तिमय हो जाता है। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। मंदिर परिसर में मां की जयघोष गूंजने लगती है। इस बार नवरात्र से पहले मंदिर परिसर में जलभराव हो गया था, जिसके कारण माता का गर्भगृह बंद कर दिया गया था और भक्त केवल मुख्य द्वार पर ही पूजा कर पा रहे थे। लगभग दो महीने तक मंदिर का मुख्य द्वार बंद रहा।
जैसे ही गंगा का पानी निकल गया और मंदिर परिसर की सफाई की गई, वैसे ही माता के दर्शन के लिए भक्तों का जनसैलाब उमड़ पड़ा। श्रद्धालु रोते हुए माता के द्वार पर आते हैं और माता के आशीर्वाद से हंसते हुए लौटते हैं। यह स्थान भक्तों की आस्था का केंद्र ही नहीं, बल्कि आत्मिक शांति का भी प्रतीक है।

महाभारत काल से जुड़ी कथा और कर्ण का रहस्य

चंडिका स्थान को महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है। ऐसा माना जाता है कि अंगदेश के राजा महाराज कर्ण प्रतिदिन माता चंडिका की पूजा करते थे। माता की कृपा से ही उन्हें प्रतिदिन सवा मन सोना प्राप्त होता था, जिसे वे दान कर देते थे। इस रहस्य को जानने के लिए एक दिन राजा विक्रमादित्य छद्म वेष में वहां पहुंचे। उन्होंने देखा कि महाराज कर्ण ब्रह्म मुहूर्त में गंगा स्नान के बाद चंडिका स्थान स्थित खौलते तेल के बड़े कड़ाह में कूद जाते हैं। इसके बाद चौंसठ योगिनियां उनके शरीर का भक्षण कर लेती हैं। जब केवल उनकी अस्थियां बचती हैं, तब माता उस पर अमृत छिड़क कर उन्हें पुनः जीवित कर देती हैं और उन्हें सवा मन सोना प्रदान करती हैं।

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अगले दिन राजा विक्रमादित्य ने यह सब स्वयं अनुभव करने का निश्चय किया। वे कर्ण से पहले वहां पहुंचे और खौलते तेल के कड़ाह में कूद गए। माता ने उन्हें भी पुनर्जीवित कर दिया। यह प्रक्रिया तीन बार दोहराई गई। चौथी बार जब राजा विक्रमादित्य कड़ाह में कूदने लगे तो माता ने उन्हें रोका और वर मांगने को कहा। राजा विक्रमादित्य ने माता से सोना देने वाला थैला और अमृत कलश मांगा। माता ने दोनों वस्तुएं उन्हें प्रदान कीं, लेकिन इसके बाद उन्होंने कड़ाह को उलट दिया, क्योंकि अमृत कलश अब उनके पास नहीं था। उसी समय महाराज कर्ण वहां पहुंचे, पर अब अमृत कलश न होने के कारण माता उन्हें पुनः जीवित नहीं कर सकती थीं। तभी से वह कड़ाह उलटा पड़ा है और आज तक उलटा ही है। वर्तमान समय में उसी उलटे कड़ाह के नीचे माता की पूजा होती है, और यह घटना भक्तों के लिए माता की शक्ति और महिमा का जीवंत प्रमाण है।

भक्तों की आस्था और मान्यताएं

चंडिका स्थान की विशेषता यह है कि यहां आने वाले भक्त अपनी समस्याओं का समाधान पाते हैं। मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति आंखों की बीमारी या किसी अन्य गंभीर समस्या से परेशान है और सच्चे मन से माता का काजल लगाता है, तो उसकी समस्या दूर हो जाती है। यहां माता से मांगा गया वर फलदायी होता है।

नवरात्र ही नहीं, पूरे वर्ष यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। खासकर चैत्र और आश्विन नवरात्र में यह स्थान विशेष रूप से सजाया जाता है। मंदिर परिसर को फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है। सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाते हैं, क्योंकि लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

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धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

चंडिका स्थान न केवल एक धार्मिक स्थल है बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक विरासत का भी हिस्सा है। यहां होने वाले आयोजन, मेलों और विशेष पर्वों में शामिल होकर लोग अपनी परंपराओं को जीवित रखते हैं। यह स्थान भारत की आध्यात्मिक धरोहर का प्रतीक है।

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