मुंगेर आए 1934 के विनाशकारी भूकंप में मुंगेर लगभग जमींदोज हो चुका था। और उसके बाद मुंगेर को पुनः सुसज्जित और व्यवस्थित ढंग से बसाया गया । यही कारण है मुंगेर में सभी सड़के चौड़ी और कई चौकों को बनाया गया। और सभी सड़कों को एक दूसरे से कनेक्ट किया गया। ताकि आपात स्थिति में लोगों को निकलने में सुविधा हो। यही कारण है की मुंगेर का चौकों का शहर भी कहा जाता है। और सभी चौकों पर किसी ना किसी महापुरुष स्वतंत्रता सेनानियों की प्रतिमाओं को स्थापित किया गया है।
रिपोर्ट – रोहित कुमार
दरअसल हमारा मुंगेर देश के पौराणिक शहरों में एक है। महाभारत काल का मोदगिरी आज मुंगेर के नाम से जाना जाता है। मुंगेर से कई ऐतिहासिक और पौराणिक कथाएं भी जुड़ी है। मुंगेर बंगाल के अंतिम नवाब मीरकासिम की राजधानी भी थी। 1934 में आए भीषण भूकंप से मुंगेर पूरी तरह क्षतिग्रस्त या कहें तो जमींदोज हो गया था। पर इस मुंगेर को पुनः नए और व्यवस्थित ढंग से सजाया और बसाया गया। यही कारण है कि मुंगेर फिर से अपनी विरासत को संजोए पूरी संजीदगी से खड़ा है। मुंगेर पुल से पुनः बसाया जा रहा था तो तब मुंगेर शहर को इस तरह से डिजाइन किया गया की मुंगेर शहर की सड़कों को चौड़ा किया गया। साथ ही सभी सड़कों को एक दूसरे से लिंक भी कर दिया गया। यही वजह है कि मुंगेर शहर में चौकों कि संख्या काफी अधिक है। और उसके बाद सभी चौकों पे किसी न किस महापुरुष या शहीद की प्रतिमा को स्थापित कर उस चौक का नामकरण भी किया गया है।
अगर बात करे सरदार बल्लभ भाई पटेल चौक से लेकर , गांधी चौक , राजीव गांधी चौक , पंडित दीनदयाल चौक , भगत सिंह चौक , इंदिरा चौक , विजय चौक, मयूर चौक , शिवाजी चौक , अंबेडकर चौक , शहीद हमीद चौक के अलावा भी कई अन्य चौक भी है। और सभी एक दूसरे से जुड़े है यहां के लोगों और जानकारों ने बताया की मुंगेर काफी पुराना और एतिहासिक शहर है। जब मुंगेर में 1934 में भूकंप आया था तब यह पूरी तरह ध्वस्त हो गया था। उसके बाद इस बात को ध्यान में रख मुंगेर को पुनः बसाया गया। और हर एक गली को एक दूसरे से कनेक्ट किया गया। ताकि फिर इस तरह का विनाशकारी आपदा आए तो लोगों को निकलने में आसानी हो। और इस के साथ ही मुंगेर चोंको का शहर भी कहा जाता है।