बिहार की शिक्षा व्यवस्था एक बार फिर सुर्खियों में है, लेकिन इस बार किसी उपलब्धि या सुधार के कारण नहीं, बल्कि एक ऐसी शर्मनाक घटना के कारण जिससे पूरे राज्य की शिक्षा प्रणाली की नींव हिल गई है। मामला मुंगेर जिले के एक सरकारी विद्यालय का है, जहाँ एक वरीय शिक्षक ने क्लास के समय स्कूली बच्चों से अपनी निजी कार धुलवाने का काम करवाया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही पूरे राज्य में आक्रोश की लहर दौड़ गई है।
शिक्षा के अधिकार का खुला उल्लंघन
शिक्षा का अधिकार हर बच्चे का मौलिक हक है। संविधान के अनुच्छेद 21ए के तहत 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की जिम्मेदारी सरकार की है। लेकिन जब जिम्मेदारी निभाने वाले शिक्षक ही इस कर्तव्य से विमुख होकर बच्चों को शिक्षा देने की बजाय उन्हें नौकरों की तरह काम पर लगाएं, तो सवाल उठना स्वाभाविक है।
मुंगेर के मध्य विद्यालय बहादुरपुर (बरियारपुर) में जो घटना सामने आई, वह न केवल इस मौलिक अधिकार का उल्लंघन है बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र की संवेदनहीनता को उजागर करता है।
वायरल वीडियो में क्या दिखा?
सोशल मीडिया पर जो वीडियो तेजी से वायरल हुआ है, उसमें स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि विद्यालय के वरीय शिक्षक अमनद कुमार पोद्दार, स्कूल के बच्चों से अपनी सफेद रंग की टियागो कार धुलवा रहे हैं।
यह घटना 19 अप्रैल 2025, शनिवार की बताई जा रही है। वीडियो में साफ दिखाई दे रहा है कि शिक्षक स्वयं पाइप से पानी कार पर डाल रहे हैं और बच्चे उसे रगड़ रगड़ कर साफ कर रहे हैं। कोई बच्चा गाड़ी के शीशे पोंछ रहा है, तो कोई चक्के को ब्रश से रगड़ रहा है।
शिक्षा का केंद्र बना श्रम केंद्र
जिस विद्यालय में बच्चों को पढ़ाई करनी चाहिए थी, वह एक अस्थायी कार वॉश सेंटर में तब्दील कर दिया गया। यह दृश्य शिक्षा के मंदिर को कलंकित करने जैसा है। बच्चों को स्कूल में ज्ञान अर्जन करना चाहिए, लेकिन यहाँ उन्हें शिक्षक द्वारा अपनी कार चमकाने का आदेश मिल रहा है। यह घटना न सिर्फ नैतिक दृष्टि से गलत है, बल्कि कानूनन भी अपराध की श्रेणी में आती है।
शिक्षा विभाग की चुप्पी
इस घटना के सामने आने के बाद जब मीडिया द्वारा शिक्षा विभाग के वरीय अधिकारियों से संपर्क किया गया, तो उन्होंने इस पर चुप्पी साध ली। कोई भी इस गंभीर विषय पर खुलकर बोलने को तैयार नहीं था। सवाल यह उठता है कि क्या शिक्षा विभाग ऐसी घटनाओं को सामान्य मानता है या फिर अपने ही तंत्र की खामियों को छुपाने का प्रयास कर रहा है?
जिलाधिकारी ने लिया संज्ञान
जब इस विषय में मुंगेर के जिलाधिकारी अवनीश कुमार सिंह से संपर्क किया गया, तो उन्होंने वायरल वीडियो को गंभीरता से लिया और तत्काल इसकी जांच करवाने का आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि यदि जांच में यह सिद्ध होता है कि शिक्षक ने बच्चों से इस प्रकार का कार्य करवाया है, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी।
पहले भी सामने आ चुकी हैं ऐसी घटनाएं
यह कोई पहली घटना नहीं है जब बिहार में शिक्षा व्यवस्था पर ऐसे शर्मनाक सवाल खड़े हुए हों। इससे कुछ ही दिन पहले भागलपुर जिले के मुखेरिया मध्य विद्यालय, जगदीशपुर में एक महिला शिक्षिका द्वारा स्कूली बच्चों से स्कूटी धुलवाने की घटना सामने आई थी। वहाँ भी स्कूली बच्चों को क्लास के समय शिक्षिका की निजी स्कूटी साफ करने के लिए मजबूर किया गया था। इन दोनों मामलों के सामने आने से स्पष्ट होता है कि कहीं न कहीं शिक्षकों में अनुशासन और जिम्मेदारी का अभाव बढ़ता जा रहा है।
बच्चों के मनोबल पर पड़ता है असर
इस प्रकार की घटनाएं न केवल बच्चों के शारीरिक श्रम का शोषण करती हैं, बल्कि उनके आत्म-सम्मान और शिक्षा के प्रति रुचि को भी खत्म कर देती हैं। जब बच्चा स्कूल आता है, तो वह अपेक्षा करता है कि उसे कुछ नया सीखने मिलेगा, वह ज्ञान की दुनिया में प्रवेश करेगा। लेकिन जब शिक्षक ही उसे झाड़ू पकड़ाकर, कपड़ा पकड़ाकर गाड़ी साफ करवाता है, तो उसकी सोच शिक्षा के प्रति नकारात्मक हो जाती है।
समाज और सरकार की भूमिका
ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए केवल प्रशासनिक कदम ही नहीं, बल्कि समाज की जागरूकता भी बेहद जरूरी है। अभिभावकों को चाहिए कि वे विद्यालय में बच्चों के साथ कैसा व्यवहार हो रहा है, उस पर नजर रखें। पंचायत स्तर पर स्कूलों की निगरानी के लिए समिति बनाई जाती है, परंतु अक्सर यह केवल नाम मात्र की बनकर रह जाती है। सरकार को भी चाहिए कि शिक्षकों की नियुक्ति के समय केवल शैक्षणिक योग्यता ही नहीं, नैतिक मूल्यों की भी जांच हो।
सवाल कई, जवाब नहीं
क्या एक शिक्षक का यही कर्तव्य है कि वह बच्चों से अपनी गाड़ी साफ करवाए?
क्या ऐसे शिक्षक को बच्चों के भविष्य का मार्गदर्शक कहा जा सकता है?
क्या शिक्षा विभाग केवल दिखावे की कार्रवाई करेगा या ऐसी घटनाओं पर स्थायी रोक लगाने के लिए ठोस नीति बनाएगा?
और सबसे बड़ा सवाल, क्या इस तरह की घटनाओं से बिहार की शिक्षा व्यवस्था कभी बाहर निकल पाएगी?
निष्कर्ष: शिक्षा व्यवस्था को चाहिए आत्ममंथन
बिहार जैसे राज्य, जहाँ शिक्षा को लेकर अनेक चुनौतियाँ पहले से ही मौजूद हैं, वहाँ यदि शिक्षक स्वयं ही शिक्षा के रास्ते में रोड़ा बन जाएं, तो सुधार की बात करना केवल कागज़ी बनकर रह जाएगा। मुंगेर की घटना हमें चेताती है कि यदि अब भी हम नहीं जागे, तो आने वाली पीढ़ियाँ शिक्षा से नहीं, अपमान और शोषण से सीखेंगी। समय आ गया है जब शिक्षा विभाग को कठोर निर्णय लेकर एक उदाहरण प्रस्तुत करना होगा, ताकि भविष्य में कोई शिक्षक अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए बच्चों की मासूमियत का शोषण करने की हिम्मत न कर सके।