मुंगेर के पाटम से विलुप्त होने के कगार पर अब पान की लाली । आर्थिक तंगी और मानसून का साथ नहीं मिलने के कारण सिमट रहा है पान की खेती ।30 वर्ष पूर्व 100 एकड़ में से अब मात्र 15 एकड़ में ही हो रही है पान की खेती।
रिपोर्ट – रोहित कुमार
दरअसल मुंगेर जिला मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर जमालपुर प्रखंड अंतर्गत पाटम पूर्वी और पाटम पश्चिमी पंचायत पान की खेती के लिए बिहार ही नहीं अन्य राज्यों में भी जाना जाता है। जो कि अब पाटम में पान की खेती विलुप्त होने के कगार पर रह गया है। इसका मुख्य कारण है कि पहले लोग खेती पर आश्रित रहते थे। लेकिन अब मानसून का साथ नहीं देना और आर्थिक तंगी के कारण पान की खेती बिल्कुल समाप्त होने के कगार पर रह गया है। जिस कारण अब पाटम का उपजाऊ पान जिले में भी दुकानदारों को सही से उपलब्ध नहीं हो पाता है।
जानकारी के मुताबिक पहले यहां का पान बनारस लखनऊ इलाहाबाद, झारखंड के अलावे अन्य राज्यों में भी रोजाना सप्लाई होता था। लेकिन अब पान की खेती कम होने के कारण जिले तक ही सीमित हो रहा है। इस संबंध में पान की खेती करने वाले किसान इंग्लिश पाटम निवासी उपेंद्र चौरसिया ने बताया कि जिला का यह पाटम गांव पान की खेती के लिए प्रसिद्ध है। पहाड़ी मिट्टी होने के कारण यहां का पान काफी स्वादिष्ट होता है। 30 वर्ष पूर्व यहां लगभग 100 एकड़ जमीन में एक हजार से अधिक घर के किसान पान की खेती करता था। अब मात्र 10 से अधिक किसान पान की खेती कर रहे हैं ।
इसके अलावे पान की खेती में खर्च अत्यधिक आता है और मुनाफा कम होता है जिस कारण आर्थिक तंगी की वजह से भी अब पान की खेती समाप्ति की ओर है। किसान ने बताया कि सरकार की ओर से सहायता नहीं मिलने के कारण भी पान की खेती नहीं कर पा रहे हैं अगर सरकार के तरफ से अनुदान राशि पान की खेती के लिए सहायता के रूप में दी जाए तो फिर से पाटन में पान की खेती जीवित हो सकता है।