यहां तपती आग पर नंगे पांव चल कर भी नहीं जलते हैं भक्त, हर मनोकामना होती है पूर्ण, जानिए क्या है रहस्य

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दरअसल कटिहार जिले के समेली प्रखंड के राजेंद्र पार्क डुमरिया में श्रद्धालुओं के पूजा करने का आश्चर्यजनक तस्वीर देखने को मिला है, श्रद्धालु पूजा करने और अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए नंगे पांव तपते आग में चलते हैं, चार दिवसीय चलने वाले इस पूजा को झील पूजा कहा जाता है, हजारों की संख्या में आसपास और दूर दराज के क्षेत्र से महिला पुरुष एवं बच्चे ,बूढ़े सभी आते हैं, बताया जाता है कि जिसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती है वो इस झील पूजा को करवाते हैं और जिसे बच्चे की नौकरी या अन्य किसी तरह की जरूरत है वैसे लोग अपने कष्ट को लेकर इस पूजा में शामिल होते हैं और सच्चे मन से नंगे पांव जलते आग पर चलते हुए झील पूजा को करते हैं, झील पूजा के मुख्य भक्त बांस से बने झील के ऊपर चढ़कर आग पर चलने के बाद उन सभी श्रद्धालुओं के आंचल में फेंक कर प्रसाद देते हैं, ऐसे में श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण कर अपनी मनोकामना को पूर्ण करते हैं,

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वही यहां आश्चर्य की बात यह है कि श्रद्धालु नंगे पांव इस आग में पैदल चलते हुए गुजरते हैं लेकिन कोई भी श्रद्धालु जलते नहीं हैं, झोपड़ी में बना झील पूजा स्थल पर श्रद्धालु भक्तों के द्वारा पूजा करवा कर अपना आंचल फैलाकर जो प्रसाद ग्रहण करते हैं उसकी मनोकामना पूर्ण होता है। भक्त की माने तो झील पूजा आदिकाल से हो रहा है और इसकी परंपरा रहा है कि श्रद्धालु नंगे पांव जलते आग पर पैदल चलते हैं, भक्त का कहना है कि अयोध्या के राजा दशरथ ने झील पूजा का शुरुआत किया था और पूजा के प्रसाद खीर को खाने के बाद राम – लक्ष्मण – भरत और शत्रुघ्न जैसे पुत्र की प्राप्ति हुई थी, श्रद्धालु की माने तो जो सच्चे मन से झील पूजा करते हैं और आग पर चलते हैं वो जलते नहीं हैं और फिर उनके मन की मुरादे मनोकामना पूरी होती है,

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इस तरह से इस चार दिनों तक चलने वाला इस झील पूजा का आयोजन किया जाता है और फिर जिनकी मनोकामना पूरा हो जाता है वो कहीं भी खुले आसमान के नीचे मैदान में झील पूजा को करवाता है। यह झील पूजा कहा जाता है और यह पूजा 4 दिन लगभग से शुक्रवार से सोमवार तक होता है। और इसमें जो मनोकामना रखता है वह मनोकामना पूरा होता है और इसमें जो बांझ है..निर्धन है को धन होता है, मतर्छिन को कोख पलटता है और जो पुत्र मांगता है पुत्र भी होता है धन होता है और किसी तरह का कष्ट भी होता है तो वह भगवान पुरा करता है। यह ठाकुर जी का व्रत एक समान से है, हां इसमें यही नियम है कि जिसको कष्ट है वह आग में प्रवेश होता है तब उसका कष्ट दूर होता है, यहां लोग जलता नहीं है, जो भगवान पर विश्वास रखता है तो उसको कुछ नहीं होता है, जो अगर डगमग करता है छः पांच करता है वह जल भी सकता है, यह झील पूजा है, इस पूजा को काशी भी बोलता है, ठाकुर जी महाराज शैलेश बाबा चूहरमल मोतीराम यही सब भगवती शीतला मालती यही सब..हर साल नहीं होता है..जिसको मनोकामना पूरा होता है वही करवाता है, यहां शुक्रवार से हो रहा है, जगह को राजेंद्र पार्क डुमरिया बोलता है, मैं भक्तराज का गुरु हुआ।

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